Monday, February 21, 2011

उर्दू किसी कौम की जागीर नहीं : फारुक अब्दुल्ला


केंद्रीय मंत्री व जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारुक अब्दुल्ला का मानना है कि उर्दू किसी कौम की जागीर नहीं है। कहा कि पिछले 60 वर्षो में उर्दू को मिटाने की जितनी कोशिशें हुईं, वह उतनी ही मजबूती के साथ उभरी है। रविवार को यहां के अंजुमन इस्लामिया हाल में उर्दू कौसिंल हिंद की तरफ से महान स्वतंत्रता सेनानी स्व. शाह मुश्ताक अहमद की जन्म तिथि के अवसर पर हिंदुस्तान में उर्दू का भविष्य विषय पर आयोजित सेमिनार को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि उर्दू को दूसरी सरकारी भाषा का दर्जा तो मिला, लेकिन उस पर अमल नहीं किया गया। समाज में अंग्रेजी के बढ़ते प्रभाव की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि ग्राहकों के अभाव में उर्दू अखबार मर रहे हैं। उर्दू अखबारों को जिंदा रखने के लिए सरकारी विज्ञापनों को बढ़ाना होगा। वादा किया कि संसद के अगले सत्र में वे उर्दू के विकास के मुद्दे को उठाएंगे। प्रधानमंत्री से मिलकर इसके लिए फंड की व्यवस्था करने का अनुरोध करेंगे। डॉ. अब्दुल्ला ने कश्मीरी हिंदुओं की परेशानियों का भी जिक्र किया। साथ ही यह भी जोड़ा कि कुछ लोगों के कारण जम्मू-कश्मीर की पूरी जनता को गलत नहीं कहा जा सकता।

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