Monday, February 21, 2011

भारत में विलुप्ति की कगार पर 196 भाषाएं


दुनियाभर में अंगे्रजी के वर्चस्व और संरक्षण के अभाव में सैकड़ों भाषाएं समाप्ति के कगार पर हैं और ऐसे देशों की सूची में भारत में स्थिति सर्वाधिक चिंताजनक है जहां 196 भाषाएं लुप्त होने को हैं। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार भारत के बाद दूसरे नंबर पर अमेरिका में स्थिति काफी चिंताजनक है जहां ऐसी 192 भाषाएं दम तोड़ती नजर आ रही हैं। विश्व ईकाई द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, आधुनिकीकरण के दौर में भाषाएं प्रजातियों की तरह विलुप्त होती जा रही हैं। एक अनुमान के अनुसार, दुनियाभर में 6900 भाषाएं बोली जाती हैं लेकिन इनमें से 2500 भाषाओं को चिंताजनक स्थिति वाली भाषाओं की सूची में रखा गया है। रिपोर्ट कहती है कि ये 2500 भाषाएं ऐसी हैं जो पूरी तरह समाप्त हो जाएंगी। अगर संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2001 में किए गए अध्ययन से इसकी तुलना की जाए तो पिछले एक दशक में काफी तेजी से बदलाव हुआ है। उस समय विलुप्तप्राय: भाषाओं की संख्या मात्र 900 थी लेकिन यह गंभीर चिंता का विषय है कि तमाम देशों में इस ओर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया जा रहा है। भारत, अमेरिका के बाद इस सूची में इंडोनेशिया का नाम आता है जहां 147 भाषाओं का आने वाले दिनों में कोई नाम लेवा नहीं रहेगा। संयुक्त राष्ट्र ने ये आंकड़े 21 फरवरी 2009 को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की पूर्व संध्या पर जारी किए थे। भाषाओं के कमजोर पड़कर दम तोड़ने की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनियाभर में 199 भाषाएं ऐसी हैं जिन्हें बोलने वालों की संख्या एक दर्जन लोगों से भी कम है। इनमें कैरेम भी एक ऐसी ही भाषा है जिसे उक्रेन में मात्र छह लोग बोलते हैं। ओकलाहामा में विचिता भी एक ऐसी भाषा है जिसे देश में मात्र दस लोग ही बोलते हैं। इंडोनेशिया में इसी प्रकार लेंगिलू बोलने वाले केवल चार लोग बचे हैं। 178 भाषाएं ऐसी हैं जिन्हें बोलने वाले लोगों की संख्या 150 से कम है। दुनियाभर में भाषाओं की इसी स्थिति के कारण संयुक्त राष्ट्र ने 1990 के दशक में 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाए जाने की घोषणा की थी।

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