Tuesday, February 22, 2011

हिंदी को और तवज्जो देने को चिदंबरम व सिब्बल से गुहार


राष्ट्रभाषा हिंदी व मातृभाषा को और तवज्जो दिए जाने की कोशिशें नाकाफी साबित हो रही हैं। लिहाजा शिक्षाविदों, कवियों व लेखकों ने सरकार से उसे और समृद्ध बनाने की गुहार की है। इसके लिए गृहमंत्री पी. चिदंबरम व कपिल सिब्बल को ज्ञापन भी दिया गया है। अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर गृह मंत्री व मानव संसाधन विकास मंत्री को भेजे ज्ञापन में सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों, डीम्ड विश्वविद्यालयों, राज्य विश्वविद्यालयों में होने वाले शोधों का कम से कम एक लेख मातृभाषा वाली पत्रिकाओं में प्रकाशित कराने की अनिवार्यता होनी चाहिए। साथ ही यूजीसी से संबद्ध विश्वविद्यालयों व अन्य विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर व सहायक प्रोफेसर स्तर के सभी शिक्षकों के मुख्य शोध के कम से कम दस प्रतिशत हिस्से को किसी जर्नल्स में लेख या अन्य किसी रूप में हिंदी या फिर किसी राज्य के सरकारी कामकाज की भाषा में प्रकाशित करने को अनिवार्य बनाने की भी मांग की गई है। सरकार को ज्ञापन भेजने वालों में उमेश कुमार सिंह चौहान, प्रो. ओमचेरि एनएन पिल्लै, प्रो. के. सच्चिदानंदन, डा. अनामिका, इग्नू के डा. एमसी नायर समेत कई दूसरे शिक्षाविद् व लेखक शामिल हैं।

Monday, February 21, 2011

भारत में विलुप्ति की कगार पर 196 भाषाएं


दुनियाभर में अंगे्रजी के वर्चस्व और संरक्षण के अभाव में सैकड़ों भाषाएं समाप्ति के कगार पर हैं और ऐसे देशों की सूची में भारत में स्थिति सर्वाधिक चिंताजनक है जहां 196 भाषाएं लुप्त होने को हैं। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार भारत के बाद दूसरे नंबर पर अमेरिका में स्थिति काफी चिंताजनक है जहां ऐसी 192 भाषाएं दम तोड़ती नजर आ रही हैं। विश्व ईकाई द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, आधुनिकीकरण के दौर में भाषाएं प्रजातियों की तरह विलुप्त होती जा रही हैं। एक अनुमान के अनुसार, दुनियाभर में 6900 भाषाएं बोली जाती हैं लेकिन इनमें से 2500 भाषाओं को चिंताजनक स्थिति वाली भाषाओं की सूची में रखा गया है। रिपोर्ट कहती है कि ये 2500 भाषाएं ऐसी हैं जो पूरी तरह समाप्त हो जाएंगी। अगर संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2001 में किए गए अध्ययन से इसकी तुलना की जाए तो पिछले एक दशक में काफी तेजी से बदलाव हुआ है। उस समय विलुप्तप्राय: भाषाओं की संख्या मात्र 900 थी लेकिन यह गंभीर चिंता का विषय है कि तमाम देशों में इस ओर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया जा रहा है। भारत, अमेरिका के बाद इस सूची में इंडोनेशिया का नाम आता है जहां 147 भाषाओं का आने वाले दिनों में कोई नाम लेवा नहीं रहेगा। संयुक्त राष्ट्र ने ये आंकड़े 21 फरवरी 2009 को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की पूर्व संध्या पर जारी किए थे। भाषाओं के कमजोर पड़कर दम तोड़ने की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनियाभर में 199 भाषाएं ऐसी हैं जिन्हें बोलने वालों की संख्या एक दर्जन लोगों से भी कम है। इनमें कैरेम भी एक ऐसी ही भाषा है जिसे उक्रेन में मात्र छह लोग बोलते हैं। ओकलाहामा में विचिता भी एक ऐसी भाषा है जिसे देश में मात्र दस लोग ही बोलते हैं। इंडोनेशिया में इसी प्रकार लेंगिलू बोलने वाले केवल चार लोग बचे हैं। 178 भाषाएं ऐसी हैं जिन्हें बोलने वाले लोगों की संख्या 150 से कम है। दुनियाभर में भाषाओं की इसी स्थिति के कारण संयुक्त राष्ट्र ने 1990 के दशक में 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाए जाने की घोषणा की थी।

भारत में विलुप्ति की कगार पर 196 भाषाएं


दुनियाभर में अंगे्रजी के वर्चस्व और संरक्षण के अभाव में सैकड़ों भाषाएं समाप्ति के कगार पर हैं और ऐसे देशों की सूची में भारत में स्थिति सर्वाधिक चिंताजनक है जहां 196 भाषाएं लुप्त होने को हैं। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार भारत के बाद दूसरे नंबर पर अमेरिका में स्थिति काफी चिंताजनक है जहां ऐसी 192 भाषाएं दम तोड़ती नजर आ रही हैं। विश्व ईकाई द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, आधुनिकीकरण के दौर में भाषाएं प्रजातियों की तरह विलुप्त होती जा रही हैं। एक अनुमान के अनुसार, दुनियाभर में 6900 भाषाएं बोली जाती हैं लेकिन इनमें से 2500 भाषाओं को चिंताजनक स्थिति वाली भाषाओं की सूची में रखा गया है। रिपोर्ट कहती है कि ये 2500 भाषाएं ऐसी हैं जो पूरी तरह समाप्त हो जाएंगी। अगर संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2001 में किए गए अध्ययन से इसकी तुलना की जाए तो पिछले एक दशक में काफी तेजी से बदलाव हुआ है। उस समय विलुप्तप्राय: भाषाओं की संख्या मात्र 900 थी लेकिन यह गंभीर चिंता का विषय है कि तमाम देशों में इस ओर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया जा रहा है। भारत, अमेरिका के बाद इस सूची में इंडोनेशिया का नाम आता है जहां 147 भाषाओं का आने वाले दिनों में कोई नाम लेवा नहीं रहेगा। संयुक्त राष्ट्र ने ये आंकड़े 21 फरवरी 2009 को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की पूर्व संध्या पर जारी किए थे। भाषाओं के कमजोर पड़कर दम तोड़ने की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनियाभर में 199 भाषाएं ऐसी हैं जिन्हें बोलने वालों की संख्या एक दर्जन लोगों से भी कम है। इनमें कैरेम भी एक ऐसी ही भाषा है जिसे उक्रेन में मात्र छह लोग बोलते हैं। ओकलाहामा में विचिता भी एक ऐसी भाषा है जिसे देश में मात्र दस लोग ही बोलते हैं। इंडोनेशिया में इसी प्रकार लेंगिलू बोलने वाले केवल चार लोग बचे हैं। 178 भाषाएं ऐसी हैं जिन्हें बोलने वाले लोगों की संख्या 150 से कम है। दुनियाभर में भाषाओं की इसी स्थिति के कारण संयुक्त राष्ट्र ने 1990 के दशक में 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाए जाने की घोषणा की थी।

भारत में विलुप्ति की कगार पर 196 भाषाएं


दुनियाभर में अंगे्रजी के वर्चस्व और संरक्षण के अभाव में सैकड़ों भाषाएं समाप्ति के कगार पर हैं और ऐसे देशों की सूची में भारत में स्थिति सर्वाधिक चिंताजनक है जहां 196 भाषाएं लुप्त होने को हैं। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार भारत के बाद दूसरे नंबर पर अमेरिका में स्थिति काफी चिंताजनक है जहां ऐसी 192 भाषाएं दम तोड़ती नजर आ रही हैं। विश्व ईकाई द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, आधुनिकीकरण के दौर में भाषाएं प्रजातियों की तरह विलुप्त होती जा रही हैं। एक अनुमान के अनुसार, दुनियाभर में 6900 भाषाएं बोली जाती हैं लेकिन इनमें से 2500 भाषाओं को चिंताजनक स्थिति वाली भाषाओं की सूची में रखा गया है। रिपोर्ट कहती है कि ये 2500 भाषाएं ऐसी हैं जो पूरी तरह समाप्त हो जाएंगी। अगर संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2001 में किए गए अध्ययन से इसकी तुलना की जाए तो पिछले एक दशक में काफी तेजी से बदलाव हुआ है। उस समय विलुप्तप्राय: भाषाओं की संख्या मात्र 900 थी लेकिन यह गंभीर चिंता का विषय है कि तमाम देशों में इस ओर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया जा रहा है। भारत, अमेरिका के बाद इस सूची में इंडोनेशिया का नाम आता है जहां 147 भाषाओं का आने वाले दिनों में कोई नाम लेवा नहीं रहेगा। संयुक्त राष्ट्र ने ये आंकड़े 21 फरवरी 2009 को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की पूर्व संध्या पर जारी किए थे। भाषाओं के कमजोर पड़कर दम तोड़ने की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनियाभर में 199 भाषाएं ऐसी हैं जिन्हें बोलने वालों की संख्या एक दर्जन लोगों से भी कम है। इनमें कैरेम भी एक ऐसी ही भाषा है जिसे उक्रेन में मात्र छह लोग बोलते हैं। ओकलाहामा में विचिता भी एक ऐसी भाषा है जिसे देश में मात्र दस लोग ही बोलते हैं। इंडोनेशिया में इसी प्रकार लेंगिलू बोलने वाले केवल चार लोग बचे हैं। 178 भाषाएं ऐसी हैं जिन्हें बोलने वाले लोगों की संख्या 150 से कम है। दुनियाभर में भाषाओं की इसी स्थिति के कारण संयुक्त राष्ट्र ने 1990 के दशक में 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाए जाने की घोषणा की थी।

भारत में विलुप्ति की कगार पर 196 भाषाएं


दुनियाभर में अंगे्रजी के वर्चस्व और संरक्षण के अभाव में सैकड़ों भाषाएं समाप्ति के कगार पर हैं और ऐसे देशों की सूची में भारत में स्थिति सर्वाधिक चिंताजनक है जहां 196 भाषाएं लुप्त होने को हैं। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार भारत के बाद दूसरे नंबर पर अमेरिका में स्थिति काफी चिंताजनक है जहां ऐसी 192 भाषाएं दम तोड़ती नजर आ रही हैं। विश्व ईकाई द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, आधुनिकीकरण के दौर में भाषाएं प्रजातियों की तरह विलुप्त होती जा रही हैं। एक अनुमान के अनुसार, दुनियाभर में 6900 भाषाएं बोली जाती हैं लेकिन इनमें से 2500 भाषाओं को चिंताजनक स्थिति वाली भाषाओं की सूची में रखा गया है। रिपोर्ट कहती है कि ये 2500 भाषाएं ऐसी हैं जो पूरी तरह समाप्त हो जाएंगी। अगर संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2001 में किए गए अध्ययन से इसकी तुलना की जाए तो पिछले एक दशक में काफी तेजी से बदलाव हुआ है। उस समय विलुप्तप्राय: भाषाओं की संख्या मात्र 900 थी लेकिन यह गंभीर चिंता का विषय है कि तमाम देशों में इस ओर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया जा रहा है। भारत, अमेरिका के बाद इस सूची में इंडोनेशिया का नाम आता है जहां 147 भाषाओं का आने वाले दिनों में कोई नाम लेवा नहीं रहेगा। संयुक्त राष्ट्र ने ये आंकड़े 21 फरवरी 2009 को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की पूर्व संध्या पर जारी किए थे। भाषाओं के कमजोर पड़कर दम तोड़ने की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनियाभर में 199 भाषाएं ऐसी हैं जिन्हें बोलने वालों की संख्या एक दर्जन लोगों से भी कम है। इनमें कैरेम भी एक ऐसी ही भाषा है जिसे उक्रेन में मात्र छह लोग बोलते हैं। ओकलाहामा में विचिता भी एक ऐसी भाषा है जिसे देश में मात्र दस लोग ही बोलते हैं। इंडोनेशिया में इसी प्रकार लेंगिलू बोलने वाले केवल चार लोग बचे हैं। 178 भाषाएं ऐसी हैं जिन्हें बोलने वाले लोगों की संख्या 150 से कम है। दुनियाभर में भाषाओं की इसी स्थिति के कारण संयुक्त राष्ट्र ने 1990 के दशक में 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाए जाने की घोषणा की थी।

उर्दू किसी कौम की जागीर नहीं : फारुक अब्दुल्ला


केंद्रीय मंत्री व जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारुक अब्दुल्ला का मानना है कि उर्दू किसी कौम की जागीर नहीं है। कहा कि पिछले 60 वर्षो में उर्दू को मिटाने की जितनी कोशिशें हुईं, वह उतनी ही मजबूती के साथ उभरी है। रविवार को यहां के अंजुमन इस्लामिया हाल में उर्दू कौसिंल हिंद की तरफ से महान स्वतंत्रता सेनानी स्व. शाह मुश्ताक अहमद की जन्म तिथि के अवसर पर हिंदुस्तान में उर्दू का भविष्य विषय पर आयोजित सेमिनार को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि उर्दू को दूसरी सरकारी भाषा का दर्जा तो मिला, लेकिन उस पर अमल नहीं किया गया। समाज में अंग्रेजी के बढ़ते प्रभाव की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि ग्राहकों के अभाव में उर्दू अखबार मर रहे हैं। उर्दू अखबारों को जिंदा रखने के लिए सरकारी विज्ञापनों को बढ़ाना होगा। वादा किया कि संसद के अगले सत्र में वे उर्दू के विकास के मुद्दे को उठाएंगे। प्रधानमंत्री से मिलकर इसके लिए फंड की व्यवस्था करने का अनुरोध करेंगे। डॉ. अब्दुल्ला ने कश्मीरी हिंदुओं की परेशानियों का भी जिक्र किया। साथ ही यह भी जोड़ा कि कुछ लोगों के कारण जम्मू-कश्मीर की पूरी जनता को गलत नहीं कहा जा सकता।

Friday, February 4, 2011

अंगरेजी के मंच पर हिंदी


मशहूर इतिहासकार रामचंद्र गुहा की हाल ही में एक किताब आई है द मेकर्स ऑफ मॉडर्न इंडिया। गुहा ने इस किताब में मौजूदा भारत के निर्माण में योगदान देने वाले राजनेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं की जिंदगी और उनके कामों की विश्लेषणात्मक जानकारी दी है। इस किताब में अगर डॉक्टर राममनोहर लोहिया का जिक्र नहीं होता, तो आश्चर्य की बात होती। गुहा इसमें अंगरेजी को लेकर उनके एक कथन को उद्धृत करने से खुद को रोक नहीं पाए हैं। अंगरेजी को लेकर लोहिया का कथन है-नदी अपनी धारा बदलेगी, अंगरेजी निरर्थक हो जाएगी। रूसी भाषा लंबे डग भरेगी। कुछ समय बाद रूसी भाषा इसी तरह इठलाएगी। रूसी व अंगरेजी के बीच आगे बढ़ने का द्वंद्व होगा। अंगरेजी अंतरराष्ट्रीय स्तर की भाषा है, यह मिथक ही रह जाएगा।
लेकिन आज जिस तरह अंगरेजी को भारतीय समाज में अहमियत मिलती नजर आ रही है, उसमें यह सवाल उठने लगा है कि क्या लोहिया की यह भविष्यवाणी गलत साबित होगी? वैसे भारतीय राजनीति में एक पीढ़ी ऐसी रही है, जिसके लिए हिंदी न सिर्फ देसी सम्मान, बल्कि संघर्ष की भाषा रही है। लेकिन समय के साथ वह पीढ़ी लगातार खत्म होती जा रही है। हालांकि एक ऐसा वर्ग जरूर है, जिसके लिए मीडिया में हिंदी का बढ़ता प्रभाव और हिंदी मीडिया का दैत्याकार विकास उनके हीनता बोध को एक हद तक परे रखने का जरिया बनता है। इन्हीं में हिंदी मीडिया और संस्कृति की दुनिया में विचरण करने और अपनी रोजी-रोटी कमाने वाला वर्ग भी शामिल है। उसे जब अंगरेजियत भरा समाज अपने साथ बुलाता है और बैठाकर सुनता है, तो वह हिंदी को महत्व मिलते देखता है। फिर वह हिंदी के जयगान में कूद पड़ता है।
खालिस अंगरेजी ढंग से शुरू हुए जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में इस साल हिंदी साहित्यकारों और समीक्षकों को अपनी तकरीर सुनाने का मौका मिला, तो उन्हें लगा कि हिंदी की स्वीकारोक्ति का दौर शुरू हो गया है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की आर्थिक मदद के सहारे शुरू हुए इस लिटरेचर फेस्टिवल में हिंदी को भी मंच देना स्वागतयोग्य है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इसी दौर में हमारे प्रधानमंत्री को सरकारी बाबुओं की अंगरेजी में खराब ड्राफ्टिंग से कोफ्त होने लगी है। उन्हें सड़कों के किनारे सार्वजनिक निर्माण विभाग, परिवहन निगम या नगर निगमों के साइनबोर्डों पर हिंदी की टूटती टांग तो नहीं दिखी, पर कैबिनेट सचिव केएम चंद्रशेखर के जरिये ड्राफ्टिंग सुधारने का फरमान जारी कराना उन्हें बेहद जरूरी लगा।
तो क्या मान लिया जाए कि लोहिया की भविष्यवाणी गलत साबित होने वाली है? ऑक्सफोर्ड या दूसरे विदेशी संस्थानों से निकलकर देसी राजनीति करने का स्वांग करने वाली पीढ़ी को लोहिया के ये विचार बेमानी लगते हैं। उसे लगने लगा है कि अंगरेजी ज्ञान के चलते ही बराक ओबामा को भारत की चौखट पर नाक रगड़ना पड़ा या फिर डेविड कैमरन पाकिस्तान को चेतावनी देने लगे या फिर चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ को भारत आना पड़ा।
तर्कशास्त्री सत्य को दो रूपों में देखते हैं। इस लिहाज से देखा जाए, तो यह एक सचाई तो है ही, लेकिन पूरी सचाई यही नहीं है। दिल्ली स्थित स्पेनिश सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक ऑस्कर पुजोल जब कहते हैं कि हिंदी में क्षमता है, दम है और सुंदरता भी, तो वह एक सत्य को ही उजागर कर रहे होते हैं। उनका कहना है कि यह मिथ है कि अंगरेजी सबसे ज्यादा बोली और समझी जाने वाली भाषा है और कार्य-व्यापार में उसका इस्तेमाल होता है। पुजॉल का कहना है कि स्पेनिश अंगरेजी से कहीं ज्यादा कार्य-व्यापार की भाषा है। हाल ही में जारी इंटरनेट वर्ल्ड स्टेट्स के आंकड़े भी दूसरे अर्थ में पुजोल की ही बात को आगे बढ़ाते हैं। इसके मुताबिक, अगले पांच वर्षों में इंटरनेट दुनिया में चीनी भाषा अंगरेजी को पछाड़ देगी।
यह सच है कि अपने यहां राजकाज और ताकत की भाषा अभी तक अंगरेजी ही है। पश्चिमी सोच वाले कथित पैराटूपर राजनेताओं की खेप को अंगरेजी में ही काम करना सुविधाजनक लगता है। लेकिन इंटरनेट वर्ल्ड की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन के राजनेताओं ने अपनी भाषा में इंटरनेट के विकास के लिए जो कदम उठाए हैं, उसका ही असर होगा कि इंटरनेट की नंबर वन भाषा उनकी अपनी चीनी ही होगी। इन अर्थों में अपने प्रधानमंत्री का आदेश भारत की लचर भाषा नीति को ही दर्शाता है।


Thursday, February 3, 2011

हिंदी सीखने के लिए भारत आए पाकिस्तानी बच्चे


हिंदी सीखने के लिए पाकिस्तानी बच्चों का जत्था भारत आया है। पड़ोसी मुल्क से आए 27 बच्चे गुड़गांव और दिल्ली के स्कूलों में क से कबूतर सीखेंगे। भारतीय स्कूलों में बिना नाम लिखाए सात दिन में हिंदी की क्लास पूरी करने के बाद वतन लौटते समय ये हिंदी की किताबें साथ ले जाएंगे ताकि होमवर्क करते रहें। अटारी बार्डर के रास्ते भारत पहुंचे इन 27 बच्चों में 11 साल का रहमान भी शामिल है। उसके दादा मोहम्मद याकूब अहमद दिल्ली के दरियागंज इलाके में रहा करते थे। रहमान पहली बार भारत आया है। उसकी हसरत है कि वह अपने दादा का पुश्तैनी मकान देख सके। उसके पास मकान ढूंढ़ने के लिए बस दादा का नाम और दरियागंज स्थित फ्लाईओवर के साथ अंदर जाती संकरी गली, नुक्कड़ पर हलवाई की दुकान और साथ में ही मसजिद..यही पता है। उसे उम्मीद है कि वह अपने दादा का पुश्तैनी मकान ढूंढ़ लेगा। इन बच्चों के साथ आए वजीर अहमद बशीर कहते हैं कि ये बच्चे गुड़गांव के बाद दिल्ली के कुछ पब्लिक स्कूलों में जाकर पढ़ाई करेंगे। भारतीय बच्चों के साथ मिलकर क्लास में अ, आ पढ़ेंगे। रहमान के साथ-साथ वाजिद, कुरैशी, अहमद भी भारत आए हैं। इनकी हसरत है कि वह सलमान खान व कट्रीना कैफ से मिलें। सरकार ने इजाजत दी तो बच्चे संसद भवन भी देखने जाएंगे। इन बच्चों के साथ चार टीचर हैं। लाहौर, कराची, इस्लामाबाद के स्कूलों के ये वे बच्चे हैं जिन्हें पढ़ाई में अव्वल रहने पर अपने-अपने स्कूलों से हाल में ही सम्मानित किया गया है।